भारत की टोल टैक्स प्रणाली को विकल्प के साथ समाप्त करने की मांग
- bharatvarshsamaach
- Aug 29
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भारतवर्ष समाचार |
नई दिल्ली
बड़ी खबर
भारत में टोल टैक्स प्रणाली, जो वर्ष 1988 में राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे के रखरखाव व विकास के लिए शुरू की गई थी, आज अव्यवस्था और विवादों का कारण बन गई है। भ्रष्टाचार, प्रशासनिक खामियां और आम नागरिकों पर बढ़ते आर्थिक बोझ के चलते विशेषज्ञ अब इसके विकल्प तलाशने की सिफारिश कर रहे हैं।
टोल टैक्स प्रणाली की प्रमुख खामियां
भ्रष्टाचार और अव्यवस्था: टोल बूथों पर अवैध वसूली और लीकेज आम बात।
जाम और प्रदूषण: फास्टैग व्यवस्था के बावजूद कई प्लाजा पर लंबी कतारें।
दोहरा कर बोझ: वाहन कर, सड़क कर, जीएसटी और ईंधन कर के बाद टोल टैक्स अतिरिक्त बोझ।
असमानता: सांसद, विधायक, जज और अफसरों को छूट, आम जनता हर बार भुगतान करती है।
ग्रामीण इलाकों पर असर: टोल बूथ के पास रहने वाले नागरिक छोटे सफर के लिए भी टैक्स चुकाने को मजबूर।
अंतरराष्ट्रीय मॉडल
नॉर्वे: टोल टैक्स की जगह ग्रीन टैक्स और कंजेशन प्राइसिंग।
यूनाइटेड किंगडम: शैडो टोलिंग मॉडल, जिसमें भुगतान सरकार करती है।
जर्मनी: ट्रकों पर कड़े शुल्क और मोटरवे वार्षिक पास व्यवस्था।
जापान: फ्लैट रेट टैक्स और सार्वजनिक वित्तपोषण।
भारत के लिए सुझाए गए विकल्प
ईंधन कर और ट्रैफिक टैक्स: हाईवे पर टोल हटाकर पुनर्गठित फ्यूल टैक्स से फंडिंग।
विशेष अधोसंरचना शुल्क: जीएसटी या वाहन कर के तहत अधोसंरचना शुल्क लागू करना।
शैडो टोलिंग: रोड उपयोग का भुगतान सरकार द्वारा, नागरिकों पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं।
डिजिटल रोड यूसेज पॉलिसी (GPS आधारित): बूथ-मुक्त और पारदर्शी प्रणाली।
सार्वजनिक बजट फंडिंग: केंद्र और राज्य सरकार के बजट से सड़क परियोजनाओं के लिए सीधा आवंटन।
कानूनी और नीतिगत चुनौतियां
एनएचएआई अधिनियम 1956 और पीपीपी समझौतों की खामियों के कारण कई बार निजी कंपनियां निर्धारित अवधि से अधिक समय तक टोल वसूलती रहती हैं। पारदर्शिता की कमी के चलते जनता में असंतोष, विरोध प्रदर्शन और सार्वजनिक हित याचिकाएं बढ़ रही हैं।
निष्कर्ष
भारत को अब पुरानी टोल टैक्स प्रणाली से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। यह केवल शुल्क समाप्त करने का प्रश्न नहीं है बल्कि समानता, पारदर्शिता, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक सुविधा से जुड़ा मुद्दा है।
GPS आधारित डिजिटल पॉलिसी, शैडो टोलिंग और बजट आधारित फंडिंग को अपनाने से न केवल सड़कों का रखरखाव बेहतर होगा बल्कि आम जनता को आर्थिक राहत भी मिलेगी।
भारतवर्ष समाचार की विशेष रिपोर्ट













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