top of page

जब 'कच्चा आम' बना सियासी हथियार: यूपी की राजनीति में कटाक्ष का नया स्वाद

  • bharatvarshsamaach
  • Jul 5
  • 2 min read
"कच्चे आम के साथ सीएम योगी की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिस पर अखिलेश यादव ने किया तीखा तंज।"
"कच्चे आम के साथ सीएम योगी की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिस पर अखिलेश यादव ने किया तीखा तंज।"

लेखक: भारतवर्ष मीडिया डेस्क | तारीख: 5 जुलाई 2025


उत्तर प्रदेश की राजनीति में बयानबाज़ी नई नहीं है, लेकिन इस बार एक फल — 'कच्चा आम' — बहस का केंद्र बन गया है।एक तस्वीर से शुरू हुआ मज़ाक अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बयान युद्ध में तब्दील हो चुका है।


आम महोत्सव में सियासी झोंका

4 जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में तीन दिवसीय आम महोत्सव का उद्घाटन किया। इस मौके पर खींची गई एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें योगी आदित्यनाथ हाथ में एक हरा, कच्चा आम पकड़े दिखाई दे रहे थे।

इस साधारण-सी तस्वीर ने उस वक्त राजनीतिक रंग ले लिया जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर तंज कसते हुए लिखा:

“कच्चे आम कह रहे, पकाओ मत!”

यह बयान जितना सरल था, उसका निशाना उतना ही गहरा था — योगी को ‘कच्चा’ बताने का इशारा, जो युवाओं और सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो गया। #कच्चा_आम ट्रेंड करने लगा और इस फल ने राजनीति में अपनी नई भूमिका निभानी शुरू कर दी।


केशव मौर्य का तीखा पलटवार

जवाब देने में पीछे नहीं रहे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य। उन्होंने बिना नाम लिए एक ट्वीट में कहा:

“नेताजी ने 2012 में एक कच्चे आम को पका हुआ आम समझने की भूल की थी, जिसे लेकर वह जीवन पर्यंत पछताते रहे।”

यह सीधा संकेत था समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव द्वारा 2012 में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की ओर। मौर्य के अनुसार, यह फैसला समय से पहले लिया गया और पार्टी को राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा।


‘आम’ से ‘आमने-सामने’ तक

एक तरफ अखिलेश यादव अपनी सोशल मीडिया रणनीति से युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं भाजपा नेता पुराने घटनाक्रमों को आधार बनाकर सधे हुए तरीके से जवाब दे रहे हैं। यह टकराव यह बताता है कि यूपी की राजनीति में अब बयान भी ब्रांडेड हो चले हैं, और कटाक्ष भी कंटेंट बनते जा रहे हैं।


क्या फल अब भी केवल फल हैं?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ये पहली बार नहीं कि प्रतीकों या चीजों का राजनीतिकरण हुआ हो — पहले माइक, साइकिल, झंडे और अब आम।लेकिन 'कच्चा आम' जिस तेजी से सियासी नुक्ताचीनी का केंद्र बना है, वह दिखाता है कि नेताओं की हर बात, हर चीज — अब प्रचार का हिस्सा है


निष्कर्ष: ताजगी या तंज?

इस पूरे घटनाक्रम ने दिखा दिया है कि राजनीति में

कोई चीज मामूली नहीं होती।एक आम भी असाधारण बन सकता है —अगर वक्त सही हो, कैमरा चालू हो और विपक्ष तैयार हो।

आने वाले चुनावी महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह ‘कच्चा आम’ वाकई चुनावी स्वाद बदलेगा, या फिर यह बस एक वायरल क्षण बनकर रह जाएगा।


क्या सोचते हैं आप?क्या इस तरह के बयानों से राजनीति का स्तर गिर रहा है या यह राजनीतिक संचार की नई शैली है?अपने विचार कमेंट सेक्शन में ज़रूर साझा करें।


© भारतवर्ष मीडिया 2025

इस लेख को शेयर करें और राजनीति के 'स्वाद' पर दूसरों की राय भी जानें।


 
 
 

Comments


Top Stories

bottom of page