जिक्र-ए-शहीदे आजम कांफ्रेंस
- bharatvarshsamaach
- Jun 30
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माहौल नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन की अकीदत में डूबा, मुफ्ती मुहम्मद आमान सिद्दीकी ने पेश किया पैगाम
रिपोर्ट: मोहम्मद कलाम कुरैशी, झांसी
झांसी। इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मोहर्रम की 4 तारीख़ (सोमवार) के साथ ही शहर का माहौल इमाम-ए-आली-मक़ाम हज़रत हुसैन की अकीदत में रंगता जा रहा है। मोहल्लों में जलसा-ए-जिक्रे शहादत का आयोजन हो रहा है, मस्जिदों से कर्बला की शहादत की सदाएं बुलंद हो रही हैं। इस माहौल में मदीना मस्जिद, मरकज़ अहले सुन्नत वल जमात, कपूर टेकरी, कुरैश नगर में जिक्र-ए-शहीदे आजम कांफ्रेंस का आयोजन किया गया।
कांफ्रेंस का आग़ाज़ और प्रमुख बातें
कांफ्रेंस की शुरुआत तर्जुमान-ए-रज़वियत मुफ्ती मुहम्मद आमान सिद्दीकी मंजरी ने तिलावत-ए-कलाम-ए-पाक से की। उन्होंने कहा,
"हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं। अल्लाह उससे मुहब्बत करता है जो हुसैन से मुहब्बत करता है।"
उन्होंने बताया कि मैदाने कर्बला की जंग हक़ और बातिल के बीच थी, जिसमें हक़ की फतह हुई। इमाम हुसैन और उनके 72 जाननिसार साथियों ने अपनी कुर्बानी देकर इस्लाम को ज़िंदा रखा। यज़ीद का नाम तक मिट गया, लेकिन हुसैन आज भी दिलों में ज़िंदा हैं।
कांफ्रेंस में दी गई सीख
कर्बला का पैग़ाम यह है कि बातिल के आगे सिर झुकाना नहीं, बल्कि सिर कटा देना बेहतर है।
मोहर्रम में खुराफात से बचते हुए इबादत में वक़्त लगाना चाहिए।
9 और 10 मोहर्रम के रोज़े रखकर नवासा-ए-रसूल को खिराज-ए-अकीदत पेश करें।
मौजूद उलमा और हाफिज
इस मौके पर कारी फुरकान, हाफिज कारी अबरार रज़ा कुरैशी (रज़ा मस्जिद), हाफिज साबिर कादरी, हाफिज अमजद कुरैशी, हाफिज रमज़ान कुरैशी आदि मौजूद रहे।
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रिपोर्टर: मोहम्मद कलाम कुरैशी, झांसी
भारतवर्ष समाचार
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