झांसी में मरहूम अज़ीज़ झांस्वी की याद में कवि सम्मेलन और मुशायरा, ग़ज़ल संग्रह का हुआ विमोचन
- bharatvarshsamaach
- Oct 25
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रिपोर्टर: मोहम्मद कलाम कुरैशी |
स्थान: झांसी, उत्तर प्रदेश
तारीख: 25 अक्टूबर 2025
झांसी: वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर शायर मरहूम अज़ीज़ झांस्वी की याद में शनिवार को राजकीय संग्रहालय, झांसी में एक भव्य कवि सम्मेलन / मुशायरा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन पयाम ए इंसानियत फोरम एवं रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
शुभारंभ और अतिथिगण
कार्यक्रम का शुभारंभ शमां रोशन करके किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि थे:
पुनीत बिसारिया
विशिष्ट अतिथि: असफान सिद्दीकी (समाजसेवी)
आफताब आलम (भेल कल्याण अधिकारी)
ओ.एस. भटनागर
प्रोफेसर इकबाल खान
खालिद खान
कार्यक्रम में ग्वालियर की विख्यात शायरा सुनिधि वैश्य की पुस्तक ‘ग़ज़ल संग्रह धूप ही धूप’ और झांसी के मशहूर शायर जाहिद कौंचवी की पुस्तक ‘मताये सुखन दयारे रुबाइयात’ का विमोचन किया गया। अतिथियों का स्वागत माला पहनाकर और बैज अलंकरण कर किया गया।
कवि सम्मेलन / मुशायरा का विवरण
कवि सम्मेलन की शुरुआत उस्ताद शायर जाहिद कौंचवी की नात ए पाक से हुई। उसके पहले भेल कल्याण अधिकारी आफताब आलम और प्रोफेसर पुनीत बिसारिया ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मरहूम अज़ीज़ झांस्वी के जीवन और साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर विभिन्न कवियों और शायरों ने अपने बेहतरीन कलाम पेश किए:
फारुख जायसी (कानपुर): “मावूद के जितने है मयानी तूं है / कोई भी नहीं है शानी तू है।”
इरफान झांस्वी: “उस शख्स के खो जाने का अफसोस बहुत है / पत्थर पे जो हीरे की चमक छोड़ गया है।”
मयकश आज़मी (आज़मगढ़): “रेत को जल समझ रहे हो क्या / प्यास का हल समझ रहे हो क्या।”
जाहिद कौंचवी: “सदाकत हार जातीं है मुहब्बत हार जाती है / यहाँ चालाक लोगों से शराफ़त हार जाती है।”
नईम जिया (कानपुर): “चलो फुर्सत है कुछ ऐसा करें हम / गड़े मुर्दो को ही जिंदा करें हम।”
यूसुफ अंजान (जालौन): “रहना है अगर सबसे आगे, जज्बों में जवानी पैदा कर।”
आरिफ़ खैलारवी: “मजनूं का इश्क वो था ये कलयुग का इश्क़ है।”
सरफराज मासूम: “सारे पहाड़ पेड़ समंदर उसी के हैं।”
राजकुमार अंजुम: “जिसपर तेरा करम नहीं वो सारे पत्थर डूब गये।”
डा. मकीन कौंचवी: “तल्ख़ियां सारी छोड़ दी मैंने / गम की बाहें मरोड़ दी मैंने।”
आजाद अंजान: “छोड़ आते हैं वृद्ध आश्रम मां-बाप को अपने / बच्चे बड़े घरों के जो कोठियों में रहते हैं।”
सत्यप्रकाश ताम्रकार (हास्य व्यंग): “पटाखों में आग जब लगाई मंत्री जी ने / आवाज़ आई घोटाला घोटाला।”
गनी दानिश: “पूजा नहीं, नमाज़ नहीं, बंदगी नहीं / जब-तक दिलों में लोगों के ईमानगी नहीं।”
प्रमुख उपस्थित लोग
कार्यक्रम में सैकड़ों साहित्य प्रेमी और स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे। इनमें शामिल थे:मजहर खान, ओ.एस. भटनागर, अलीम अहमद ख़ान, प्रोफेसर इकबाल खान, पी.के. श्रीवास्तव, नईम ख़ान, पत्रकार ज़ावेद राजू, मुहम्मद आमिर खान, खालिद अज़ीज़, साहिर अली, शोखीराम, शाकिर शैफी, शाहिद शैफी, जैनुल आब्दीन, प्रभात कुमार, आसिफ़ अली, हाजी अब्दुल रहमान, अलीम खान, शकील ख़ान, मन्नू ख़ान, राकेश कुमार, पत्रकार कलाम कुरैशी।
कार्यक्रम का संचालन इरफान झांस्वी ने किया और आभार व्यक्त किया जाहिद कौंचवी ने।
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भारतवर्ष समाचार ब्यूरो
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