पूर्व सांसद फूलन देवी की पुण्यतिथि पर विचार गोष्ठी, महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणास्रोत : बृजेन्द्र सिंह
- bharatvarshsamaach
- Jul 25
- 2 min read
रिपोर्टर: कलाम कुरैशी |
स्थान: झाँसी
प्रकाशन: भारतवर्ष समाचार
तारीख: 25 जुलाई 2025
झाँसी। समाजवादी पार्टी के जिला कार्यालय जीव शाह में पूर्व सांसद फूलन देवी की 24वीं पुण्यतिथि पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह ने की, जबकि मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री अजय सूद रहे। गोष्ठी की शुरुआत फूलन देवी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई।
गलत प्रथाओं के विरुद्ध संघर्ष की प्रतीक रहीं फूलन देवी
इस अवसर पर जिलाध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह ने कहा कि फूलन देवी ने समाज में व्याप्त गलत और दमनकारी प्रथाओं के खिलाफ संघर्ष कर महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत के रूप में पहचान बनाई। उन्होंने अपने जीवन में अत्याचार झेला, लेकिन हार नहीं मानी।
उन्होंने आगे कहा, "अपने ऊपर हुए अत्याचारों के चलते उन्होंने अलग रास्ता चुना और 22 दोषियों को सज़ा दी। बाद में इंदिरा गांधी सरकार के माध्यम से आत्मसमर्पण किया और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सानिध्य में राजनीति में कदम रखा।"
लोकसभा तक का सफर और समाज में पहचान
बृजेन्द्र सिंह ने बताया कि फूलन देवी को जब समाजवादी पार्टी ने लोकसभा का टिकट दिया, तब काफी विरोध हुआ। एक समय डाकू कही जाने वाली महिला जब संसद पहुंचीं, तो उन्होंने अपने कार्यों से निषाद समुदाय की आवाज़ बनकर पहचान बनाई। वह दो बार सांसद बनीं और ग्रामीण, पिछड़े तबकों तथा महिलाओं की आवाज़ बनीं।
कार्यक्रम में कई वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता रहे मौजूद
विचार गोष्ठी में पूर्व मंत्री अजय सूद, अरविंद वशिष्ठ, सलीम खानजादा, मिर्जा करामत बेग, के.के. सिंह यादव, विश्व प्रताप सिंह, संजय पाल, दीपाली रायकवार, सीमा श्रीवास्तव, आरिफ़ खान, बच्चा सिंह, सोहेब मकरानी, पुष्पेन्द्र यादव, हिमांशु यादव, मनीषा कुशवाहा, सतीश रायकवार, अभिषेक, मनीष रायकवार, आमिर खान सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद रहे।
कार्यक्रम का संचालन जिला महासचिव राधे लाल बौद्ध ने किया और आभार संजय पाल ने व्यक्त किया।
भारतवर्ष समाचार की टिप्पणी
फूलन देवी की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस समाज की तस्वीर है, जहाँ हाशिए पर खड़े व्यक्ति संघर्ष कर संसद तक पहुँचते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर यह कार्यक्रम न केवल श्रद्धांजलि का माध्यम बना, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संघर्ष, साहस और बदलाव की आवाज़ें आज भी ज़िंदा हैं।
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