प्रेम, दबाव और फर्जीवाड़ा: वाराणसी स्टेशन पर पकड़ा गया फर्जी टीटी
- bharatvarshsamaach
- Jun 28
- 2 min read
संवाददाता: नौमेश कुलदीप श्रीवास्तव | भारतवर्ष समाचार, वाराणसी
वाराणसी। देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन पर एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां बीटेक पास युवक ने रेलवे का फर्जी टीटी बनकर टिकट चेकिंग और अवैध वसूली का गिरोह चला रखा था। जीआरपी और आरपीएफ की सतर्कता से इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ।
फर्जी टीटी बना बीटेक पास युवक
गिरफ्तार आरोपी की पहचान आदर्श जायसवाल के रूप में हुई है, जो मध्य प्रदेश के रीवा का रहने वाला है। उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रखी है, लेकिन सरकारी नौकरी न मिलने के कारण मानसिक तनाव में था। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह यह सब अपनी प्रेमिका से शादी के लिए कर रहा था।
प्रेमिका के परिवार वालों की ओर से शादी की शर्त रखी गई थी — "सरकारी नौकरी"। इसी दबाव में आकर उसने खुद को रेलवे टीटी के रूप में पेश करना शुरू कर दिया।
कैसे करता था फर्जी चेकिंग और वसूली?
आदर्श रेलवे की फर्जी वर्दी पहनकर वाराणसी स्टेशन और ट्रेनों में सक्रिय रहता था। वह असली टीटी की तरह यात्रियों से टिकट मांगता, फर्जी जुर्माने वसूलता और कई बार नकली टिकट भी बनाता था। शुरू में उसकी चालाकी किसी को समझ नहीं आई, लेकिन जैसे-जैसे शिकायतें बढ़ीं, जीआरपी और आरपीएफ हरकत में आईं।
फर्जी पहचान के साथ पकड़ा गया आरोपी
जब जीआरपी और आरपीएफ की टीमों ने उसे प्लेटफॉर्म पर संदिग्ध गतिविधियों के दौरान रोका, तो उसके पास से फर्जी रेलवे आईडी कार्ड, नकली यूनिफॉर्म और जाली टिकट बरामद हुए। मौके पर ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इंस्पेक्टर रजौल नागर ने दी जानकारी
जीआरपी कैंट, वाराणसी के इंस्पेक्टर रजौल नागर ने बताया कि आदर्श जायसवाल के खिलाफ संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि आरोपी ने बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से लोगों को धोखा दिया और रेलवे की छवि को नुकसान पहुँचाया।
सवाल जो समाज से पूछे जाने चाहिए
इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
क्या रेलवे जैसे संस्थानों में वेरिफिकेशन प्रक्रिया कमजोर है?
क्या सामाजिक दबाव और बेरोजगारी युवा वर्ग को अपराध की ओर धकेल रही है?
क्या सरकारी नौकरी की सामाजिक ‘प्रतिष्ठा’ ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाला है?
निष्कर्ष
वाराणसी स्टेशन पर पकड़ा गया यह फर्जी टीटी न सिर्फ एक अपराधी है, बल्कि समाज में मौजूद उस मानसिकता का प्रतीक भी है, जहां नौकरी का मतलब केवल सरकारी मुहर हो गया है। अब ज़रूरत है कि प्रशासन सतर्क हो, और समाज सोच बदले।
---
भारतवर्ष समाचार के लिए वाराणसी से संवाददाता नौमेश कुलदीप श्रीवास्तव की विशेष रिपोर्ट

















Comments