मां के कंधों पर जिम्मेदारी, बेटे ने पहनी फौजी वर्दी
- bharatvarshsamaach
- Jun 15
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लेखक: भारतवर्ष समाचार टीम
प्रकाशित तिथि: 15 जून 2025
जब कोई सपना अधूरा रह जाता है, तो वो अक्सर किसी और की आंखों में पलता है।अमरोहा के लेफ्टिनेंट शिवम शर्मा की कहानी सिर्फ एक सैन्य अफसर की सफलता नहीं है — यह उस बेटे की कहानी है, जिसने अपने पिता का सपना मां की आंखों में देखा... और फिर उसे हकीकत बना दिया।
अमरोहा का साधारण घर, असाधारण इरादे
शिवम का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन में ही उनके पिता श्री अरुण शर्मा का निधन हो गया।यह एक बड़ा झटका था — लेकिन उनकी मां सुशमा शर्मा ने न केवल अपने बेटे को संभाला, बल्कि उसे उड़ान भरने की ताकत भी दी।
ना कोचिंग, ना शोर... सिर्फ मेहनत और मां का साथ
शिवम ने CDS की तैयारी घर से की। न कोई कोचिंग, न महंगे नोट्स — सिर्फ मां के हाथ का खाना और देर रात तक की पढ़ाई।उनकी सबसे बड़ी ताकत थीं उनकी मां — जो खुद शिक्षित नहीं थीं, लेकिन बेटे के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बन गईं।
कठिन ट्रेनिंग, मजबूत हौसला
CDS पास करने के बाद शिवम ने SSB इंटरव्यू क्लियर किया। इसके बाद शुरू हुई 18 महीने की कड़ी ट्रेनिंग —जहां हर सुबह पसीना बहा और हर रात मां की यादों से भरी हुई थी।
और फिर आया वो गौरवपूर्ण दिन — जब शिवम ने सेना की वर्दी पहनी।उन्होंने मां से कहा:
"मम्मी, ये वर्दी आपकी है।"
यह क्षण केवल एक सैन्य अधिकारी की शपथ का नहीं था — यह एक बेटे की तरफ से अपनी मां को दिया गया सबसे बड़ा सम्मान था।
युवाओं के लिए प्रेरणा
शिवम शर्मा का संदेश साफ है:
"अगर खुद पर भरोसा है, तो रास्ते खुद बनते हैं।कोचिंग नहीं है? संसाधन नहीं हैं? कोई बात नहीं।इरादे मजबूत हों, तो मंज़िल दूर नहीं रहती।"
निष्कर्ष
भारतवर्ष समाचार लेफ्टिनेंट शिवम शर्मा जैसे हर युवा को सलाम करता है,और उन मांओं को भी — जिनके कंधों पर ज़िम्मेदारी आती है, लेकिन वो कभी झुकती नहीं हैं।
जय हिंद।
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