top of page

वंदे मातरम विवाद : श्री अरविंद और गांधी जी का दृष्टिकोण

  • bharatvarshsamaach
  • Aug 15
  • 5 min read

Updated: Aug 19

भारतवर्ष समाचार | अमरोहा


आज का दिन भारत की आज़ादी का वो अविस्मरणीय दिन है जो हमें सतत् याद दिलाता रहेगा कि इस दिन को देखने के लिए कितने वीर सपूतों ने अपनी कुर्बानी दी है🙏🙏


आज ही के दिन भारत के एक महान सपूत का जन्म भी हुआ था जिन्हें हम श्री अरविंद (श्री अरबिंदो) के नाम से जानते हैं, श्री अरबिंदो एक आध्यात्मिक दार्शनिक और क्रांतिकारी थे। उनका जीवन मनुष्य की संभावनाओं को दृढ़ इच्छाशक्ति से हकीकत में बदलने का था। पिता जी की जिद पर उन्होंने प्रतिष्ठित ICS की परीक्षा पास की, सुख सुविधाओं का त्याग करके महान क्रांतिकारी बनें अलीपुर बम मामले पर अंग्रेजो ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया और उसके बाद वो महान आध्यात्मिक दार्शनिक गुरु के रूप में ख्यातिलब्ध हुए। उन्होंने जो भी लक्ष्य ठाना उसे शिद्दत से पूरा किया। और इसलिए समस्त आजादी के नायकों में उनका व्यक्तित्व मुझे विशेष रूप से प्रभावित करता है।


लेकिन आज मैं उनके राजनीतिक-सांस्कृतिक दर्शन पर ही चर्चा करना चाहूंगा और उनके विचारों के बरक्स आज़ादी के एक और नायक महात्मा गांधी के विचारों की तुलना के माध्यम से उस द्वैत को स्पष्ट करूंगा जिसमें मुझे लगता है देश की समस्याओं को समझने और सुलझाने में मदद कर सकते हैं।


गांधी जी द्वारा श्री अरबिंदो से मुलाकात के प्रयास :


गांधी जी ने अफ्रीका से वापस लौटने के बाद 1915 से कई बार कोशिश श्री अरबिंदो से मिलने की लेकिन दूसरी तरफ से मुलाकात के प्रति प्रयोजनपूर्ण उदासीनता ही दिखाई दी। ऐसे में गांधी जी ने अपने बेटे देवदास को 1924 में अरविंदो से मिलने पांडिचेरी भेजा था।

देवदास ने अहिंसा के बारे में जब अरविंद से उनके विचार पूछे तो उन्होंने कहा, " मान लीजिए अफ़गानों ने भारत पर आक्रमण कर दिया, तो आप अहिंसा से उसका सामना कैसे करेंगे ?" इसके बाद दोनों में कोई संवाद नही हुआ।

1934 में गांधी जी पांडिचेरी पहुंचे थे, इस बार उन्होंने सीधे श्री अरबिंदो को पत्र लिखकर भेंट करने की इच्छा जताई परन्तु अरविंद इस मामले में स्पष्ट थे उन्होंने जवाब में बस इतना कहा कि की मुलाकात कुछ उच्चतर प्रेरणा के कारण सम्भव नही है।


गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत पर उनके विचार:


श्री अरबिंदो का मानना था कि गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत अत्यधिक आदर्शवादी और कुछ परिस्थितियों में अव्यवहारिक था। वे मानते थे कि स्वतंत्रता संग्राम में हिंसा और अहिंसा दोनों का संतुलित उपयोग परिस्थिति के अनुसार आवश्यक हो सकता है। अरबिंदो ने क्रांतिकारी आंदोलनों का समर्थन किया था और वे हिंसा को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए एक वैध साधन मानते थे, जब तक वह उच्च उद्देश्य के लिए हो।


"वंदे मातरम" विवाद


अरबिंदो ने बांदे मातरम पत्रिका (1906-1908) के माध्यम से गीत को राष्ट्रीय जागरण का प्रतीक बनाया। उन्होंने लिखा: "वंदे मातरम केवल शब्द नहीं, यह भारत माता की आत्मा का आह्वान है।" (Bande Mataram पत्रिका में उनके लेख)। बंकिमचंद्र द्वारा लिखित ये गीत राष्ट्रीय आंदोलन का ऊर्जा गीत बन चुका था।


वहीं गांधी वंदे मातरम को राष्ट्रीय भावना के लिए महत्वपूर्ण तो मानते थे, लेकिन इसके कुछ छंदों में हिंदू धार्मिक प्रतीकवाद (जैसे माँ दुर्गा का उल्लेख) के कारण मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचने की चिंता जताई। गांधी ने आभासी साम्प्रदायिक एकता को प्राथमिकता दी जो कि तुष्टिकरण की बुनियाद पर हिलती हुई प्रतीत हो रही थी और 1947 में भरभरा का ढह गई।


रबींद्रनाथ टैगोर जैसे विचारकों ने गीत की साहित्यिक और भावनात्मक शक्ति की प्रशंसा की, लेकिन वे भी इसके धार्मिक प्रतीकवाद को लेकर अति संवेदनशील थे। टैगोर ने जन गण मन को अधिक समावेशी मानते हुए इसे राष्ट्रीय गान के रूप में प्रस्तावित किया।


हालांकि क्रांतिकारियों का समर्थन रहा, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी नेताओं ने वंदे मातरम को उत्साहपूर्वक अपनाया। उनके लिए यह गीत ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक था, जैसा श्री अरबिंदो ने स्थापित भी किया था।


कुछ मुस्लिम नेताओं, जैसे मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग के सदस्यों, ने वंदे मातरम को हिंदू-केंद्रित मानते हुए इसका विरोध किया। उनका तर्क था कि गीत में मातृभूमि को देवी के रूप में चित्रित करना इस्लाम के एकेश्वरवाद के खिलाफ है। 1937 में मुस्लिम लीग ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में अस्वीकार करने की मांग की।

श्री अरबिंदो ने उस वक्त ही इस विवाद का भविष्य देख लिए था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि आज अगर हम कट्टरवादी विचारों के आगे समझौता कर लेंगे तो क्या गारंटी है आगे भी ऐसा नही करना पड़ेगा? उनका मानना था कि वंदे मातरम जैसे प्रतीकों को कमजोर करने से राष्ट्रीय एकता के बजाय साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। बाद में, भारत के विभाजन ने उनके संदेहों को सही साबित किया!!


हिंदू मुस्लिम एकता

इस संबंध में उनके विचार स्पष्ट थे। "आप उस धर्म के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से रह सकते हैं जिसका सिद्धांत सहिष्णुता है। लेकिन उस धर्म के साथ शांतिपूर्वक रहना कैसे संभव है जिसका सिद्धांत "मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं करूँगा" है? निश्चित रूप से हिंदू-मुस्लिम एकता इस आधार पर नहीं हो सकती कि मुसलमान हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करते रहेंगे जबकि हिंदू किसी मुसलमान का धर्म परिवर्तन नहीं करेंगे। आप इस आधार पर एकता नहीं बना सकते। शायद मुसलमानों से सामंजस्य बनाने का एकमात्र तरीका यही है कि उन्हें अपने धर्म के प्रति कट्टर आस्था से मुक्त कर दिया जाए।"

अतः हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने एक समन्वयवादी दृष्टिकोण की वकालत की, जिसमें भारत की वेदांतिक और समावेशी परंपराएँ सभी समुदायों को एकजुट कर सकती थीं। वे मानते थे कि इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच गहरे आध्यात्मिक स्तर पर सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है, बशर्ते हर कोई अपनी कट्टरता छोड़ दें।


राष्ट्रीय चेतना के कमजोर होने का डर:

अरबिंदो को डर था कि गांधी की नीतियाँ, विशेष रूप से वंदे मातरम जैसे प्रतीकों को संशोधित करने की प्रवृत्ति, भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना को कमजोर कर सकती हैं। वे मानते थे कि भारत को अपनी सांस्कृतिक पहचान को गर्व के साथ अपनाना चाहिए, न कि उसे समझौतों में कम करना चाहिए।


"भारत की स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जनन का आह्वान है। गांधी का रास्ता इसे पूरी तरह प्राप्त नहीं कर सकता।"


निःसंदेह दोनों ही स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक हैं। लेकिन श्री अरबिंदो की आलोचनाएँ गांधी के दर्शन और रणनीति के प्रति वैचारिक मतभेद को उजागर करती हैं। जहाँ गांधी का अत्यधिक बल अहिंसा और नैतिकता के माध्यम से जन-आंदोलन था, वहीं अरबिंदो इसे सतही और एकांगी मनाते थे और क्रांतिकारी परिवर्तन और आध्यात्मिक उत्थान के पक्षधर थे। दोनों का लक्ष्य भारत की स्वतंत्रता था, लेकिन उनके मार्ग और दृष्टिकोण भिन्न थे।

मुझे लगता है श्री अरबिंदो के विचारों को और अधिक समग्रता में देखे जाने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं।शुभ हो 🙏🙏



 ⸻


 भारतवर्ष समाचार  ब्यूरो

 संपर्क: 9410001283

 वेबसाइट: www.bharatvarshsamachar.org



 
 
 

Comments


Top Stories

bottom of page