संभल में मोहर्रम जुलूस की तैयारी के नाम पर 35 दुकानें हटाई गईं, व्यापारी परेशान
- bharatvarshsamaach
- Jul 3
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रिपोर्टर: प्रदीप मिश्रा, संभल
स्थान: संभल, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में मोहर्रम के दौरान निकलने वाले पारंपरिक अलम जुलूस की तैयारी को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता नजर आ रहा है। नगर पालिका प्रशासन द्वारा सब्ज़ी मंडी में स्थित लगभग 30 से 35 दुकानों को हटवा दिया गया, जिससे स्थानीय दुकानदारों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। यह कार्रवाई बिना किसी मुआवजे या वैकल्पिक व्यवस्था के की गई, जिससे व्यापारियों में गहरा आक्रोश है।
तीन घंटे में बुलडोज़र ने बनाया रास्ता
नगर पालिका की ओर से चलाए गए अभियान में करीब तीन घंटे के भीतर बुलडोज़र लगाकर मिट्टी डाली गई और रास्ता साफ कराया गया, ताकि मोहर्रम के जुलूस के लिए जगह बनाई जा सके। यह कार्यवाही पूरी तरह प्रशासनिक निगरानी में की गई, जिसमें कोतवाली संभल और थाना नखासा क्षेत्र की पुलिस फोर्स भी तैनात रही।
पांच दिन तक व्यापार ठप, कोई मुआवजा नहीं
स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि प्रत्येक दुकानदार को लगभग ₹5000 तक का व्यक्तिगत नुकसान हुआ है, जिसमें दुकान हटाने, सामान सहेजने और दोबारा लगाने का खर्च शामिल है। इसके अलावा कम से कम 5 दिनों तक कारोबार पूरी तरह ठप रहेगा, जिससे आर्थिक संकट और गहरा सकता है।
हर साल दोहराया जाता है यही दृश्य
व्यापारियों का कहना है कि यह सिर्फ इस साल की बात नहीं है। हर साल जुलूस के नाम पर दुकानें हटवा दी जाती हैं, लेकिन कभी कोई मुआवजा या पुनर्वास की योजना नहीं बनाई जाती। इस बार भी नगर पालिका ने बिना किसी पूर्व सूचना के बुलडोज़र चला दिया।
एक स्थानीय दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,"हम भी धार्मिक कार्यक्रमों का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें बार-बार बिना नोटिस, बिना मुआवजे के उजाड़ दिया जाता है। प्रशासन को कम से कम व्यापारियों के लिए कोई विकल्प तो देना चाहिए।"
प्रशासनिक तंत्र अलर्ट पर
अलम जुलूस को लेकर पूरे इलाके में प्रशासन सतर्क है। कोतवाली संभल और थाना नखासा की पुलिस टीमें लगातार निगरानी कर रही हैं ताकि मोहर्रम के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो।
निष्कर्ष
धार्मिक आयोजनों की सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता अपनी जगह है, लेकिन हर बार इसका खामियाजा व्यापारियों को भुगतना पड़े, यह कहीं न कहीं व्यवस्था की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। बिना मुआवजा या पुनर्व्यवस्था के व्यापार बंद कराना न केवल आर्थिक अन्याय है, बल्कि सामाजिक असंतोष का कारण भी बन सकता है।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मसले पर व्यापारियों की शिकायतों का समाधान करता है या फिर अगली मोहर्रम तक फिर वही कहानी दोहराई जाएगी।
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रिपोर्टर: प्रदीप मिश्रा
भारतवर्ष समाचार
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