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दहशत के चार दशक: पुलिस की गोलियों को दी मात, जरायम की दुनिया ने ही ले ली बलि

  • bharatvarshsamaach
  • Jul 9
  • 2 min read

विशेष रिपोर्ट: नौमेश श्रीवास्तव | भारतवर्ष समाचार


मुन्ना बजरंगी: आग़ाज़ से अंजाम तक


पूर्वांचल का एक नाम, जो करीब चार दशकों तक आतंक, राजनीति और अपराध का पर्याय बन गया — मुन्ना बजरंगी, यानी प्रेम प्रकाश सिंह। एक ऐसा नाम जिसे पुलिस की 11 गोलियां भी नहीं रोक पाईं, लेकिन अपराध की दुनिया ने ही अंत में उसकी सांसें छीन लीं।


9 जुलाई 2018, बागपत जेल — दिन वही तारीख, जब उसने कई साल पहले दूसरों की जिंदगी छीनी थी, उसी दिन उसे खुद अपने ही साथी कैदी सुनील राठी ने मौत के घाट उतार दिया।


साधारण गांव, असाधारण दहशत की शुरुआत


जन्म हुआ 1967 में जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में। पिता किसान, परिवार साधारण। लेकिन सपने... बड़े और भटकाव भरे। पढ़ाई में मन नहीं लगा, पांचवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया। कुश्ती और हथियारों की दीवानगी बढ़ती गई। 14 साल की उम्र में विवाह और जल्द ही पहला खून — 250 रुपये में देसी कट्टा खरीदकर चाचा के अपमान का बदला लिया।


17 की उम्र में पहला केस और फिर माफिया की राह


1980 के दशक में पहला आपराधिक मामला दर्ज, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले गजराज सिंह के गिरोह में शामिल हुआ, फिर 1990 में मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ बना। इसके बाद राजनीति, ठेकेदारी, और खून-खराबे में उसका नाम जुड़ता गया।


सनसनीखेज हत्याएं और दहशत की पराकाष्ठा


  • 1993: जौनपुर में बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह और उनके गनर की हत्या

  • 1995: वाराणसी में छात्रनेता राम प्रकाश शुक्ल की हत्या

  • 1996: AK-47 से ब्लॉक प्रमुख कैलाश दुबे और अन्य की हत्या

  • 2005: गाजीपुर में विधायक कृष्णानंद राय की हत्या, 400 राउंड गोलियां चलीं


इन वारदातों ने मुन्ना बजरंगी को पूर्वांचल का सबसे खतरनाक गैंगस्टर बना दिया।


1998: पुलिस मुठभेड़ में 11 गोलियां, लेकिन मौत नहीं


दिल्ली के समयपुर बादली में पुलिस के साथ मुठभेड़, उसे 11 गोलियां लगीं, फिर भी वह जिंदा बच गया। डॉक्टरों के लिए भी यह हैरानी की बात थी। लेकिन जैसे उसकी मौत से पहले कई अधूरी कहानियां बाकी थीं, वो फिर सक्रिय हुआ।


2009 में गिरफ्तारी और जेल की साजिश


मुंबई से गिरफ्तार होकर वह जेल पहुंचा, लेकिन असली मोड़ तब आया जब राजनीति ने उससे किनारा किया। धीरे-धीरे गिरोह बिखरने लगे, अंदरूनी दुश्मनी पनपी। और अंततः


2018: बागपत जेल में अंत, सवालों की भरमार


9 जुलाई 2018 को जेल के भीतर ही हत्या — गोली मारने वाला था उसका ही साथी सुनील राठी

  • जेल में चार पिस्टल कैसे पहुंचीं?

  • क्या यह वाकई गैंगवार था या सत्ता का खेल?


सीबीआई जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए, लेकिन सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।


मुन्ना बजरंगी: एक नाम, एक सबक


मुन्ना की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं।

  • साधारण किसान का बेटा

  • अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह

  • और अंततः अपने ही जैसे अपराधी के हाथों मौत


यह दास्तान हमें सिखाती है कि अपराध की दुनिया में कोई सच्चा साथी नहीं होता, और चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न बन जाओ, अंजाम काली रातों में ही लिखा जाता है।





रिपोर्ट: नौमेश कुलदीप श्रीवास्तव

भारतवर्ष समाचार संपर्क विवरण

फोन: 9410001283

वेबसाइट: www.bharatvarshsamachar.org




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