बरेली: 18 अगस्त से शुरू होगा 107वां उर्स-ए-रज़वी, दुनिया भर से जुटेंगे लाखों जायरीन
- bharatvarshsamaach
- Jul 14
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रिपोर्ट: मोहम्मद कलाम कुरैशी, झांसी | भारतवर्ष समाचार नेटवर्क
बरेली, उत्तर प्रदेश – इमाम अहमद रज़ा खान फाजिल-ए-बरेलवी का 107वां सालाना उर्स-ए-रज़वी इस वर्ष 18 अगस्त से बरेली में शुरू होगा। यह तीन दिवसीय आध्यात्मिक और इस्लामी आयोजन 18, 19 और 20 अगस्त को दरगाह आला हज़रत परिसर में आयोजित होगा। इस ऐतिहासिक उर्स की शुरुआत परंपरागत "परचम कुशाई" की रस्म से होगी, जिसमें लाखों जायरीन और सैकड़ों उलेमा-ए-इकराम की शिरकत तय मानी जा रही है।
दरगाह से हुई तारीखों की औपचारिक घोषणा
आज दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां और दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हानी मियां की मौजूदगी में उर्स की तारीखों की विधिवत घोषणा की गई। इस अवसर पर सय्यद आसिफ मियां, मुफ्ती आकिल रज़वी, मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी, मुफ्ती अय्यूब नूरी, मुफ्ती कफील हाशमी समेत देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रमुख उलेमा शरीक रहे।
बरेली – झुमकों से इतर अब "आला हज़रत" की पहचान बन चुकी है
झांसी के मुफ्ती आमान सिद्दीकी मंजरी, जो मदीना मस्जिद, मरकज़ अहले सुन्नत वल जमात, कपूर टेकरी कुरैश नगर के पेश इमाम हैं, ने इस मौके पर कहा:
“बरेली अब सिर्फ झुमकों के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि आज यह आला हज़रत के नाम से पूरी दुनिया में पहचाना जाता है। यहाँ की दरगाह पूरी दुनिया के अहले सुन्नत वल जमात का मरकज़ बन चुकी है।”
उन्होंने कहा कि आला हज़रत ने हमेशा हक की बात की, मज़हबी एकता और इल्म की रोशनी फैलाई। आज भी उनकी नस्लें और मानने वाले उसी रास्ते पर चलकर दीन की खिदमत कर रहे हैं।
देश-विदेश से जुटेंगे लाखों जायरीन और उलेमा
यह उर्स केवल एक मजहबी रस्म नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का बड़ा केंद्र है। हर साल की तरह इस बार भी बरेली शरीफ में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, ब्रिटेन, कनाडा, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका से लाखों जायरीन शामिल होंगे।
उर्स के दौरान कई अहम कार्यक्रम आयोजित होंगे:
कुरआन ख्वानी
नातिया महफिल
तकरीरी इजलास
सूफियाना कव्वालियाँ
मजहबी मुद्दों पर सेमिनार
हर प्रोग्राम में आला हज़रत की तालीम, उनके फतवे और उनके द्वारा फैलाए गए इल्म की झलक देखने को मिलेगी।
कौन थे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी?
इमाम अहमद रज़ा खां फाजिल-ए-बरेलवी, 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत के प्रमुख सुन्नी इस्लामी स्कॉलर, मुफ़्ती, लेखक और सूफी संत थे। उन्होंने तफ़सीर, हदीस, फिक्ह, तसव्वुफ, अरबी, फ़ारसी, गणित, खगोल और दर्शन जैसे विषयों पर 1000 से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनका फतवा संग्रह ‘फतवा रज़विया’ आज भी दुनियाभर के मदरसों और दारुल उलूमों में पढ़ाया जाता है।
क्या कहता है यह आयोजन आज के दौर में?
यह उर्स सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि एक सूफियाना आंदोलन भी है — जो मोहब्बत, अमन, भाईचारे और इस्लामी तालीम की बुनियाद पर खड़ा है। यह उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद और रौशनी का मरकज़ बन चुका है, जो आज की अशांति और भ्रमित हालातों में सच्चाई और रूहानी सुकून की तलाश में हैं।
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रिपोर्टर :मोहम्मद कलाम कुरैशी, झांसी |
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