राज्यसभा में गरजे जयशंकर: 'कान खोलकर सुन लें', सिंधु जल संधि पर नेहरू की नीतियों पर कसा तंज
- bharatvarshsamaach
- Jul 30
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नई दिल्ली | रिपोर्ट – भारतवर्ष संवाददाता
राज्यसभा में बुधवार को उस वक्त राजनीतिक तापमान चढ़ गया जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, पर सीधा हमला बोला। सिंधु जल संधि, ऑपरेशन सिन्दूर, और भारत-पाक संबंधों को लेकर जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत अब इतिहास की गलतियों को दोहराने नहीं जा रहा।
"कान खोलकर सुन लें..." — ट्रंप और मोदी को लेकर फैलाई गई भ्रांतियों पर तीखा जवाब
राज्यसभा में विपक्ष द्वारा उठाए गए इस आरोप पर कि ट्रंप ने भारत-पाक के बीच सीजफायर समझौता कराया था, जयशंकर ने दो टूक कहा:
"22 अप्रैल से 16 जून तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच एक भी फोन कॉल नहीं हुआ। यह केवल कल्पना है, तथ्य नहीं।"
उन्होंने इस कथन के साथ विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा,
“कुछ लोग इतिहास को भूल जाना चाहते हैं, शायद इसलिए क्योंकि वह उनके लिए असहज है।”
सिंधु जल संधि: इतिहास की भूल या रणनीतिक भूल?
जयशंकर ने 1960 में हुए सिंधु जल संधि को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
"नेहरू ने संसद में कहा था कि इस संधि पर फैसला तकनीकी और वित्तीय आधार पर नहीं होना चाहिए। उन्होंने पाकिस्तानी पंजाब की चिंता की, लेकिन अपने ही देश के राज्यों – कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के किसानों की कोई चिंता नहीं दिखाई।"
मोदी सरकार ने "ऐतिहासिक भूलों" को सुधारा: जयशंकर
विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि मोदी सरकार ने वो कर दिखाया जो 60 सालों में किसी सरकार ने नहीं किया।
"हमें दशकों तक कहा गया कि आर्टिकल 370 नहीं हट सकता, सिंधु जल संधि को बदला नहीं जा सकता। लेकिन हमने वो करके दिखाया।"
उन्होंने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा:
"जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक सिंधु जल संधि स्थगित रहेगी।"
"खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते"
जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत अब भावनात्मक और भ्रामक नीतियों के बजाय रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देगा।
"हमने कह दिया है — खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। पाकिस्तान को तय करना है कि वह किस रास्ते पर चलता है।"
निष्कर्ष:
राज्यसभा में जयशंकर के बयान न केवल पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हैं, बल्कि घरेलू राजनीति में भी एक मजबूत संकेत हैं कि मोदी सरकार पुरानी गलतियों की पुनरावृत्ति नहीं करेगी। सिंधु जल संधि की पुनः समीक्षा इस दिशा में उठाया गया एक साहसिक कदम है, जिसकी गूंज आने वाले समय में भी सुनाई देती रहेगी।
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